Friday 26 September 2008

राष्ट्रकवि दिनकर

नौ दशकों पहले की तिथि थी एक बहुत ही पावन
जन्म लिया था कविवर ने कवियों के वो थे राजान

मास सितम्बर तिथि थी तेईस, नाम पड़ा युग चारण
बजे नगाडे थे मुंगेर में, सबने किया था गायन

घाट सिमरिया नामक गाँव में जन्म हुआ था जिसका
मोकामा का स्कूल तथा पटना कॉलेज में शिक्षा

विद्यालय के एक प्रधानाचार्य रह चुके थे वे
जब सब रजिस्ट्रार के पद पर नियुक्त किये गए थे

साहित्यिक सेवाओ से उनको मिला था सम्मान
डी.लिट. की मानद उपाधि ने किया थे उन्हें प्रणाम

लेकिन इन सबसे हटकर वो थे केवल कविवर ही
इसिलए तो उन्हें मिली है राष्ट्रकवि की उपाधि

'साहित्यामुखी', 'आधुनिक बोध', 'रेती के फूल', 'वेणु वन'
रचनाओं का था जैसे, चरणों में उनके मधुवन

'प्रणभन्ग' तथा अन्य कवितायें, 'कविश्री' जैसी रचनाएं
यात्रा संस्मरण भी था नामक 'मेरी यात्राएँ'

'मृत्ति तिलक', 'आत्मा की आँखें', 'हारे को हरिनाम'
था एकांकी संग्रह जिसका नाम पड़ा, 'हे राम !'

'रश्मि लोक', 'भारतीय एकता', 'कोयला और कवित्व'
'लोकदेव नेहरु' जिसे थे उनके रचना तत्त्व

'अर्धनारीश्वर' जैसी कृतियाँ निकलीं उनकी कलम से
'राष्ट्र एकता का महत्व' भी कहा उन्होंने हमसे

खोजी थी एक शुद्ध कविता 'संस्कृति और एकता'
'संस्मरण और श्रद्धांजलियाँ' , संस्मरण था उनका

'सीपी और शंख', 'रसवंती', थी उनकी 'हुंकार'
इन कृतियों पे उन्हें मिला था ज्ञानपीठ पुरस्कार

'दिनकर की सूक्तियां' भी लिखीं थी उन्होंने काव्य डगर पर
'शिखा चेतना की' दी थी मानव को जीवन पथ पर

किन्तु नियति थी यह छह वर्षों एवं छह दशकों तक
छाछठ वर्षों तक ही जीवें देख सका यह लेखक

सन उन्नीस सौ चौहत्तर तक ही था उनका जीवन
सिद्ध कर गए वह ही थे इस कलियुग के युग चारण

यद्यपि केवल छाछठ वर्षों की थी उनकी आयु
किन्तु दे गए कवितायें वह जो होंगी चिर आयु

दिनकर के जीवन के ऊपर पूर्ण हुई यह कविता
यह उनतक पहुंचे बस इतनी सी है मेरी इच्छा