Thursday 29 January 2015

गाँधी की हत्या के दोषी

गाँधी की हत्या कब हुई? गाँधी की हत्या किसने की? प्रश्न थोड़े अधूरे लगते हैं। सही प्रश्न तो कुछ ऐसे होने चाहिए: गाँधी की हत्या कब-कब हुई और किस-किस ने की? और इन हत्याओं के बाद भी क्या गाँधी जीवित हैं? यदि हाँ तो किस रूप में? क्योंकि नाथूराम की तीन गोलियों में तो महात्मा गाँधी के प्राण लेने की क्षमता नहीं थी। अपितु उस फाँसी के फंदे में ज़रूर थी जिसपर गाँधी की हत्याके अपराध में नाथूराम को मृत्युदंड दिया गया। वैसे उसके पहले भी गाँधी की कई बार हत्या हो चुकी थी। जब उन्हींकी पार्टी ने, जिसको उन्होंने ही आम जनता से जोड़ा था, उनकी एक न सुनी। आपस में लड़ रहे वह लोग जो खुद को गाँधीवादी कहते थे, कभी भी गाँधीवाद को अपने अहंकार से ऊपर नहीं रख पाए। वह आम लोग जो गाँधी की एक आवाज़ पर अंग्रेज़ों के बड़े से बड़े क़ानून की अवहेलना कर देते थे, उस दिन उनके बार-बार निवेदन करने पर भी अपने ही भाइयों के गले काटने से बाज न आए। तो फिर गाँधी की हत्या के लिए मात्र गोडसे को मृत्युदंड क्यों? और गाँधी नोटों और मूर्तियों मे जीवित नहीं रहता, ना ही प्रार्थना सभा में गोलियाँ खाने से मरता है। गाँधी तब मरता है जब गोडसे को फाँसी दे दी जाती है, गाँधी तब मरता है जब उसीके नाम पर जनता की सेवा करने का संकल्प लेकर कोई जनता से छल करता है और उसके लिए बेतुक़े तर्क देता है, गाँधी तब मरता है जब उसको राष्ट्रपिता मानने वाले देश का कोई व्यक्ति अपनी आवश्यकता से अधिक संसाधनों का उपयोग करता है और अपने भाइयों को भूख से मरने के लिए छोड़ देता है, गाँधी तब मरता है जब बात-बात पर उसीके अनुयायियों द्वारा खड़े किए गए दो देश एक दूसरे से भिड़ जाते हैं, गाँधी तब मरता है जब कुछ लोग धर्म को जोड़ने की नहीं तोड़ने का साधन बना लेते हैं। तो कौन-कौन है गाँधी की हत्या के प्रयास का दोषी? लेकिन इनके बार-बार मारने पर भी वह मरा नहीं। इसलिए नहीं कि उसकी मूर्तियाँ हर जगह लगा दी गई हैं लोंगो बताने के लिए कि वह कौन था। बल्कि इसलिए कि एक महिला अपने क्षेत्र पर हो रहे अन्याय के विरोध में 14 साल से अनशन कर रही है। गाँधी इसलिए जीवित है क्योंकि एक अश्वेत व्यक्ति उससे प्रेरणा लेकर अपने देश में रंगभेद का अंत कर देता है। गाँधी इसलिए जीवित है क्योंकि सत्य पर चलने वाले कर्तव्यनिष्ठ अभी समाप्त नहीं हुए हैं और तमाम विसंगतियों के बावजूद समर्पण करने या पलट कर मारने को तैयार नहीं हैं। गाँधी इसलिए जीवित है क्योंकि दंगो के समय अपने बेटों के मार दिए जाने के बाद भी एक महिला दूसरे धर्म के 11 बच्चों के प्राण बचाती है। गाँधी इसलिए जीवित हैं क्योंकि कुछ लोग आज भी बिना किसी लाभ की आशा के बस लोंगो की निःस्वार्थ सेवा किए जा रहे हैं। हम जैसे बुद्धिमान ऐसे लोंगो को मूर्ख कह सकते हैं। लेकिन सत्य तो यही है कि हमारे बटोरे हुए हज़ार-हज़ार के नोटों पर गाँधी का चित्र भले बना हो पर गाँधी जीवित तो ऐसे ही व्यक्तियों की वजह से है। हम तो उनमें से ही हैं जो प्रार्थना सभा में हाथ जोड़ कर उसपर गोलियाँ दाग रहे हैं। लेकिन वह उनसे मरेगा नहीं। हाँ, गोलियाँ चलाने के पक्ष में तर्क देने वाले को देखकर उसके मुँह से स्वतः ही निकल पड़ेगा... हे राम!      

Wednesday 21 January 2015

सुख का मूल्य

खै़र, सभी सुखी तो नहीं रह सकते।

तो फिर कौन पिएगा यह हालाहल,
दूसरों को अमृतपान का सुख देने के लिए?
कौन करेगा अस्थिदान,
वज्र सा कठोर हो दूसरों की रक्षा करने के लिए?

किसी ना किसी को तो आगे आना होगा,
अग्नि में खुद को तपाना होगा,
बलि वेदी पर शीश चढ़ाना होगा।

क्योंकि बिना मूल्य तो कुछ मिलता नहीं।

कौन है जो दूसरों के सुख का मूल्य अपने दुःख से चुकाए?
खुद अशांत रहकर दूसरों के जीवन में शांति लाए?

क्या यह ईश्वर का दायित्व है?
या उनका जो 'सर्वे भवन्तु सुखिनः' की कामना करते हैं?
उनके सुख की भी, जो शायद उसके योग्य नहीं।